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गुरुवार, 28 सितंबर 2017

विकास पगला गया


पता तो करो कौन  बरगला गया है
सुना है कि विकास  पगला गया है
जो मंच से  खूब  गलगला गया था
वो खुद को  जादूगर  बता गया था
किसानों जवानों की बात करता था
देश न झुकने  दूंगा  दम्भ भरता था
टैक्स वाली समस्या  हल कर दूंगा
काला धन लाकर हर घर भर दूंगा
नारी सुरक्षा  का  उसका वादा था
हत्या लूट के खात्मे पर आमदा था
गाय गंगा के  हित से यूँ वास्ता था
वहीं है हिंदुत्व  जिसका रास्ता था
देश लाइन में  लगाकर  चला गया
दो दिनों बाद टेंसुएँ बहाने आ गया
कहता था चौराहे पर लटका देना
जी में आये तो सूली  पे चढ़ा देना
मेरा  क्या  झोला  वाला फकीर हूँ
उठाया चल दूंगा  इतना गम्भीर हूँ
गधे से  सीख  रहा  हूँ मुझे देखो न
सबका डीएनए जांचा मेरा देखो न
बेरोजगारों  की  चमड़ी उधेडा हूँ
बेटियों को  लाठियों से खदेड़ा हूँ
शिक्षामित्रों  की  चिता लगाया हूं
रोजगार सेवकों को लतियाया हूँ
बच्चों को जिंदा  ये दफना गया है
सुना है की विकास पगला गया है
राम मंदिर का खेला खेल गया है
लेके मोटा सा ये चंदा पेल गया है
शहीदों की बात पे हकला गया है
ई गुजराती विकास पगला गया है
देख अश्विन भी  कैसे ठगा गया है
ये भक्तों का  बप्पा  पगला गया है

......... जिस तरीके से आज भारत देश की नीतियां हैं शासन-प्रशासन है और पूरा प्रतिरूप है उसको देखते हुए ही लग रहा है कि विकास पूरी तरह से अपना संतुलन खो बैठा है। हमारी सभी सिर्फ विनती है कि इस विकास को इसकी औकात पर रखे और भविष्य में विकास को संभाल कर रखेंगे कहीं फिर से ना पगलाने पाए,,,,,,,,,,

            ― अश्विनी यादव

सोमवार, 18 सितंबर 2017

शख्सियत 3 ( चंद्रेश यादव )


नमस्कार,
मैं शख्सियत के नए अंक मे आपकी मुलाकात फिर से एक नई शख्सियत से करवा रहा हूं, जिन्हें मैं अपने बचपन से, शायद उनके बारे में लगभग सब कुछ या बहुत कुछ जानता हूं आप मेरे लिए हमेशा प्रेरणा स्रोत रहे हैं हमारा मार्गदर्शन करते रहे हैं और सही गलत की शिक्षा के साथ-साथ मुझे हमेशा लिखते रहना और हक की आवाज बुलंद करने के लिए प्रेरित करते रहें, जी हां मैं बात कर रहा हूं अपने अग्रज श्री चंद्रेश यादव जी की।
.......हालांकि मेरी हैसियत नही है इतनी की मेरे द्वारा आपका परिचय कराऊँ.....फिर भी.... ये हिमाकत जरूरी थी।
........ आप पेशे से अधिवक्ता है, समाजवादी पार्टी के जमीनी नेता है, और एक नेक दिल के मालिक है... इलाहाबाद से 12 वीं के बाद से लखनऊ यूनिवर्सिटी llb और एल एल एम पूरा किया । आप का शुरू से ही  छात्र हित हो  या अन्य कोई मुद्दा हो आप हमेशा संघर्षशील रहे हैं  जिसकी बदौलत आपने 2004 में लखनऊ यूनिवर्सिटी में कैंपस से छात्र नेतृत्व करते हुए विधि प्रतिनिधि का चुनाव जीता, इसके उपरांत 2005 2006 में लखनऊ यूनिवर्सिटी से उपाध्यक्ष पद के प्रत्याशी रहें..... 2011 में प्रतापगढ़ से आपने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जिस में मामूली अंतर से हार गए, लेकिन आपके जुझारूपन को देखते हुए घर का एक अनुज अनुराग यादव बाली छात्र संगठन हित में आगे आया और आपके मार्गदर्शन में इविवि से उपमंत्री का चुनाव लड़ा, अब आपके ही मार्गदर्शन में ही हमारी भाभी जी समर्थक भावना यादव जानकीपुरम, लखनऊ से पार्षद प्रत्याशी भी है।
खैर ये सब तो चलता ही रहेगा, अब मैं भैया जी की कुछ दिलचस्प बातों से रूबरू कराता हूं मित्रों..
मैं बचपन में एक बात हमेशा दुखी होता था कि भैया मुझे हर सुबह ढेर सारे सिक्के रहते थे और मैं दिन भर उनके साथ खेलता रहता था शाम को जो सोया था था वह मेरी जेब से सारे सिक्के निकाल लेते थे फिर अगले दिन वह मुझे देते थे और यह कहते थे कि तुमने सारे सिक्के को दिए अब लोग फिर से दे रहा हूं और मैं दिन भर यही सोचता रहा है बार बार मुझे सिक्के दे रहे हैं और मैं गंदा हूं की खो दे रहा हूं। अब आता हूं दूसरी बात पर तो अभी तक यहां रहेंगे भैया का जब क्रिकेट खेलने का मन होता है तो हम लोग के साथ जबरदस्ती खेलते हैं क्रिकेट और सबसे बड़ी बात यह है कि उन्हें पहले बैटिंग और पहले बोलिंग चाहिए, अगर हम उनके साथ में न खेले तो चिल्लाने के लिए कोई न कोई बहाना ढूंढ लेते हैं।
इन सब से परे एक दूसरा लोगों का यह है कि उन्हें कुत्तों से बहुत प्यार है वर्तमान समय में उनके पास तीन है छोटू टाइगर, जेनी.... और हम भाइयों के लिए अथाह प्रेम, पूरे परिवार का ख्याल रखना... परंतु इनकी भूल जाने की आदत सबसे गंदी है पर सबसे अच्छा यह है कोई भी मिलता है आपसे तो मिलनसार व्यक्तित्व की वजह से उसे कभी यह फील नहीं होता है कि वह आपसे पहली बार मिल रहा है।
अपने हिसाब और हैसियत के अनुसार अनगिनत लोगों की मदद करते हुए आज इस मुकाम तक पहुंचे है,,,,,आपके द्वारा कभी किसी के साथ कोई धोखेबाजी न करना ही मैंने सरखों पर आपको रखा है।
आपसे सबको सिर्फ एक बात की शिकायत है कि आप फोन नही उठाते है, कहीं पहुंचने के लिए देर कर देते हैं, व्यस्तता में कई काम भूल जाते है,
मैं आपको जन प्रतिनिधि के रूप में देखना चाहता हूं, उम्मीद है कि एक दिन ये हकीकत होगा और जल्द ही होगा।
आज मुझे इतने ढेर सारे लोग जानते है, और ध्यान रखते है इन सबके लिए आपका ढेरो योगदान है।
"पिता की अनुपस्थिति में बड़ा भाई सारी जिम्मेदारी निभाता है,, ये सिर्फ सुना ही नही हम देख भी रहे हैं...
घर से दूरी कभी महसूस नही होती,,,,
धन्यवाद अग्रज श्री चंद्रेश यादव जी

                     ― अश्विनी यादव

रविवार, 10 सितंबर 2017

आशुतोष तिवारी (शख्सियत)

नमस्कार,
जैसा कि मैं पिछली बार की तरह फिर एक शख्सियत से मिलवाता हूं आपको,
आज मैं आपका परिचय करवाता हूं पेशे से शिक्षक और कलम की ताकत से पहचान बनाने वाले श्री आशुतोष तिवारी जी से।
शुरू में मैं इनको पढ़ता रहा था और काफी दिनों तक इनको पढ़ता ही रहा फिर धीरे-धीरे इनको जाना समझा हमारी बातें कई बार हुई मुलाकात हुई, अब इन्हें न तो आलोचक कह सकता हूं ना ही किसी पार्टी का प्रशंसक कह सकता हूं हालांकि इनका झुकाव भारतीय जनता पार्टी की ओर है फिर भी जहां पर भारतीय जनता पार्टी को गलत दिखती है यह स्वयं सामने खड़े हो जाते हैं और जवाब मांगते हैं, इन्हें सिर्फ हिंदूवादी तो नहीं कहेंगे क्योंकि इनकेे कामों को मैं हिंदू सशक्तिकरण के तौर पर देख सकता हूं लेकिन इनके लिए इंसानियत सर्वोपरि है, देश हित सर्वोपरि है,
आशुतोष भइया को बहुत ही अल्प समय में ही शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए जिलाधिकारी महोदय द्वारा सम्मानित किया गया मैं लगातार YouTube पर वीडियोज देखता रहता हूं जहां पर बच्चों को पूरा क ख ग घ नहीं आता था वहां पर तिवारी भइया ने बच्चों को हरे क्षेत्र की शिक्षा दी। वह योग से लेकर खेल हो या गणित से लेकर अन्य विषय हो भैया के साथी शिक्षक भी क्षेत्र में उनका भरपूर सहयोग कर रहे हैं मैं इनके लेखन से काफी प्रभावित हूं उनका लेखन चाहे वह कविता हो ब्लॉग हो राजनीति पर हो आलोचना हो कुछ भी हो सब बेहतरीन होता है अब मैं परिपक्वता झलकती है अभी कुछ दिनों पहले ही भैया से मुलाकात का अवसर प्राप्त हुआ यह लखनऊ में आए थे और उन्हें दिल्ली जाना था मैं पहली बार भैया से चारबाग बस स्टेशन पर मिला,
यहां पर एक मुस्लिम समुदाय की महिला थी उन्होंने हम से यह कहा बेटा बड़ी भूख लगी है कुछ खिला दो भैया पीछे रह गए थे कुछ खरीद रहे थे हमने कहा चलो कुछ खा लो हमने होटल वाले से कहा कुछ सादा खाना दे दो और पैसा देने लगा तब तक वह महिला बोल पड़ी कि भैया मीट खाऊंगी इस पर मेरा मूड थोड़ा सा बदल गया क्योंकि मुझे बुरा इस बात का लगा कि अभी खाने के लिए नहीं था और मैं खिला रहा हूं किसी तरीके से तो उसमें आपको मीट खाना है अजीब बात है ।
तब तक आशु भैया आ गए और हमसे बोले कि जब किसी को बैठा दिए खाने के लिए तो उसको खिला दो जो खाना है उसे खा ले और उन्होंने पैसे पैसे दिए होटल वाले को और हम लोग हम दोनों लोग आगे बढ़ गए एक बढ़िया जगह पर बैठकर चाय पिया गया बहुत ढेर सारी बातें हुई भैया को छोड़कर मैं वापस लाइब्रेरी आ गया।
और इसी वाकये के बाद मुझे यह समझ में आया कि किसी की मदद करते समय उसके जाति धर्म समुदाय देश ऐसा कुछ भी नहीं देखा जाता है और ना ही देखना चाहिए क्योंकि इंसानियत सर्वोपरि है वैसे तो मेरे और आशु भैया के दल अलग है जिसके हम समर्थन करते हैं लेकिन दोनों का दिल राष्ट्रहित में ही धड़कता और दिमाग समाज हित में ही सोचता है।
मुझे समय समय पर पता चलता रहता है कि आपने यह फलाना अच्छा काम किया है फलाने के साथ यह मदद कर दिया है इन सबसे खुशी मिलती है लेकिन मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है देश के नींव को सवारने की जिम्मेदारी आप बखूबी निभा रहे हैं।अर्थात बच्चों को बेहतरीन शिक्षा दे रहे हैं।
मैं आपसे मिला आप को पढ़ा और आपसे सीखा इस बात की मुझे बहुत खुशी है इसलिए मैं Facebook का धन्यवाद करता हूं आपका भी आपका अनुज अश्विनी यादव ।
इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए हम जल्द मिलेंगे एक नई शख्सियत के साथ।
धन्यवाद

बुधवार, 6 सितंबर 2017

बगिया गए थे

थोड़ी सी धूप

थोड़ी सी ख़ुश्बू

हम चुरा लाये हैं 

आज बगिया गए थे,

गुलमोहर के फूल  

कुछ कुतरे से फल

हम उठा लाये हैं

आज बगिया गए थे,

कोयल की कूक

मोरनी की पीहू

हम सुना लाये हैं

आज बगिया गए थे,

मुस्कुराती घासें

बावली सी तितली

हम दिखा लाये है

आज बगिया गए थे।।

   
 ~ अश्विनी यादव