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शनिवार, 20 मई 2017

पहले जैसा हो जायेगा

सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा
न तुम्हारे आने से कुछ रुका था,
न ही अब थम जायेगा,
सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा,

न सूरज का उगना रुकेगा,
न ही चंदा का आना,
न ही रुकेगी तारों की टिमटिम,
न हवाओ का इतराना,
न रुकेगी JIO की स्पीड,
और न IPL सीजन का आना,
न roadies का fever,
न तारक मेहता SAB पर आना,
ऐ काश कुछ बदलता जिंदगी में,
पर जब तुम थे सब वैसा रह जायेगा,
सुनो, सब पहले जैसा ही हो जायेगा,

हाँ शायद इतना फर्क पड़ा है मुझ पर
अब रातों में ख़ामोशी सी है,
दिन में छाया धुंधलापन है अब,
कुछ आदतें तुम डाली ही थी,
कुछ को तुमने बदला था तब,
उनमें से कुछ तो बदलेंगी,
कुछ फिर वैसे हो जाएंगी,
कुछ तो गिर कर सम्हलेंगी,
कुछ नई भी पड़ जाएंगी,
बस इतना जीवन में बदलेगा
बाकि फिर पहले जैसा हो जायेगा,
सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा,

            ― प्रशांत त्रिपाठी

शुक्रवार, 12 मई 2017

गांव की याद

पत्थर के शहर से दूर जा रहा
फिर याद गांव की आयी है...

बूढ़ा बरगद, छलकता पोखर
खेतों में हरियाली छाई है...

माँ बोली थी बेटा जल्दी आना
फिर ये बात याद आयी है...

       ©  अश्विनी यादव

बुधवार, 10 मई 2017

हे बुद्ध

हे बुद्ध अरे हाँ बुद्ध
सुनो गौतम हाँ तुम्ही से
मैं पूंछ रहा हूँ,
जिज्ञासा भेंट रहा हूँ,
जिस पीपल के नीचे
जिस बोधगया में तुमने
बोध किया था बौद्ध का
उसे फिर सँवारने फिर
उजाले की ओर में ले
जाने आये नही क्यूं ?
मैं पूंछ रहा हूँ,
जिज्ञासा भेंट रहा हूँ,
हाँ मुझे आज भी
आश है उस लुम्बिनी से
फिर कोई सूरज जन्मेगी
जो आ सके सारनाथ
हमे जीने की राह दिखाये
धर्म प्रेम और ज्ञान सिखाये
श्रावस्ती अब बदहाल है
उपदेश देने आये नही क्यूं ?
मैं अबोध पूंछ रहा हूँ,
बुद्ध जिज्ञासा भेंट रहा हूँ,
    नमो बुद्धाय

    ©  अश्विनी यादव

बुधवार, 3 मई 2017

तुम्ही सिखा दो

आख़िर हम क्या जाने प्यार वफ़ा,
और इसमें के हुये नुकसान नफ़ा,
हम ठहरे सीधे साधे है संसार के,
पर नाम हमारा काफ़ी है वार को,
इक तुम ही वाकिफ़ नही हो हमसे,
इक हम है जो सीख रहें है तुमसे,
चलो तुम ही सिखा दो वादे कसमें,
या आकर सिखा दो रिवाजे रस्में,
छोडो ये सब तुम से न हो पाएगा,
हमें सिखाने में ही प्यार हो जायेगा,

       ― अश्विनी यादव

      ( प्रशांत त्रिपाठी जी से प्रेरित )


मंगलवार, 2 मई 2017

लौट मत आना

गर तुम्हें छोड़कर जाना है तो शौक से जाओ
पर ख्याल रहे तुम फिर कभी लौट मत आना,
कोई शिकवा शिकायत हो तो सुना के जाओ
तुम बात नई लेके फिर कभी लौट मत आना,
हमें भुला दो,  अपने भुला दो,  और ये शहर
पर रिश्ता कोई जोड़कर कभी लौट मत आना,
होगा ताज़्जुब  जरा सा लोगों और खुदा को
पर हमारी  लाज रखने कभी लौट मत आना,
कोई उम्मीद नहीं  पर एक वादा करते आओ
न ज़िक्र करना, न फ़िक्र करना, न याद करना,
     
         ― अश्विनी यादव