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गुरुवार, 18 जून 2020

कविता ( हम काले लोग )

हम मज़दूर हैं, हम काले हैं
गिरने की, जलने की, मेहनत की
आदत है हमारी,
लेकिन तुम नाज़ुक हो चुके हो
हमारा ख़ून पीते पीते..

हमारे ये हाथ तेरे
इन हथौड़ों से ज़ियादः
इन पत्थरों से ज़ियादः
मजबूत हो गए हैं
खदाने बदल गईं
कुदालें बदल गईं
लेकिन ये हमारे हाथ
नही बदले तो नही बदले....

हम जानवर तो नही थे
जो यूँ हमें तुमने बेंचा
फिर से ख़रीदा फिर से बेंचा
मैं पूछता हूँ के आख़िर क्यों..?
मेरे रंग के कारण ?
मेरी जात के कारण ?
या मेरे भाषा के कारण ?

चलो मैं फिर से पूछता हूँ
अधिकार किसने दिया ?
ऊँचा किसने बनाया ?
मैं उसी से जंग चाहता हूँ
तुम बीच में मत आना
नाज़ुक हो टूट जाओगे
जब पहाड़ तोड़ दिया
तो तुम कुछ भी नही हो....

~ अश्विनी यादव

शुक्रवार, 5 जून 2020

नज़्म ( ख़ुशनसीब कलम )

तुम आगे की सीट पर बैठी
क़िताब में उलझी हुई थी
और मैं तुम्हारे बगल से
दो सीट पीछे बैठा
तुम्हारे बालों में उलझा था
जिनसे छनकर
तुम्हारे चेहरे की रौशनी
मुझ तक आ रही थी
तुम्हारे उंगलियों के बीच फँसी
वो ख़ुशनसीब कलम
जिसे लगातार अपने होठों से
छुए जा रही थी
और इधर मैं ख़ुद को
कलम सा महसूस
कर रहा था.....
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   अश्विनी यादव

क़िस्से भारत भूषण पन्त के

मैं और भारत भूषण पन्त दादा
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      भारत दादा का एक शे'र जिसे पढ़ने में, कहने में लगभग हर बार मैं ग़लती कर देता था.....

"क़रीब आती हर एक शय ने मेरा नज़रिया बदल दिया है
मैं जिसके पीछे पड़ा हुआ था उसी से पीछा छुड़ा रहा हूँ,,

लेकिन अब याद है। हाँ तो शे'र को जब उन्होंने मेरे लिए पढ़ा तो मैं बस मुस्कुरा ही पाया और मुँह से इतना निकला कि "अरे यार दादा आप के पास होना ही मेरी कमाई है और मेरी ज़िंदगी का ये मुक़ाम है कि आप मुझे शे'र सुना रहे हैं वो भी बगल बैठाकर,,और फिर वो मुस्कुरा दिए।वो अपनी सफेद दाढ़ी -मूँछ के बीच में वो ही हल्की सी एक इंच मुस्कान लिए जब बोलते थे तो बहुत अच्छा लगता था।❤️

लेकिन उनके जाने के बाद मैंने देखा कि दो तरह के लोग सामने आए... एक तो वो जिनमें झूठे लोगों की बाढ़ सी आ गयी जैसे उन लोगों के लिए दादा के गुज़रने के कुछ दिन बाद ही एक ग़ज़ल कही थी जिसके शे'र कुछ यूँ है...

"मर जाते ही दुनिया को ख़ूबी दिखती है
बदल रहे हैं क़िस्से भी बतलाने वाले,,

दूसरे वो लोग भूल गए, जब तक ज़िन्दा थे तब तक अरे दादा ये अरे दादा वो , दादा आप महान हो ब्ला ब्ला....करके पोस्ट पर दीमक की तरह लगे रहते थे, और सबके सामने कहते थे कि दादा मैंने शाइरी के असली मानी तो आपसे ही सीखे हैं लेकिन अब वो ही उनके जाने के बाद एक पोस्ट तक नही कर पाए थे जन्मदिन पर या कोई और भी दिन पर...... ऐसे बहुत से नाम हैं क्या ही अब बेइज़्ज़त करूँ।

ये लो दादा का ही शे'र....

"मुनहसिर इतना लिबासों पर है मेरी शख़्सियत
    हर किसी के सामने नंगा ही कर देगी मुझे,,

ख़ैर अब मेरे पोस्ट करने का कोई फ़ायदा नही होना है और उन दो कौड़ी के लोगों को कोई फ़र्क़ ही पड़ने वाला है। सो ये शे'र दादा का.....

इस बार तुम्हारे रोने पर कुछ लोग चले आये लेकिन,
हर बार कहाँ ये मुमकिन है हर बार कहाँ से लाओगे

मंगलवार, 2 जून 2020

जन्मोत्सव भारत भूषण पन्त दादा का

जन्मदिन की बधाई दादा
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        हाँ मैंने अपनी पढ़ाई -लिखाई के समय में से थोड़ा सा कीमती समय एक जगह पर ख़र्च किया था वो भी किसी शायर के सानिध्य के लिये, वैसे तो जुड़ाव शायर होने की वजह से हुआ था लेकिन बाद मुझे दादा और बच्चे जैसी मुहब्बत का एहसास होने लगा सो समय बीच बीच में ख़र्च होता गया। मैं इस दावे से कह सकता हूँ आज यानी 3 जून 2020 से पहले के क़रीब 3 साल मैंने केवल पढ़ाई पर दिए लेकिन इसी बीच में एक ऐसे महान शख़्सियत का इतने क़रीब आना और रिश्ते में जुड़ जाना नाम देना और फिर चले जाना...... वाक़ई में मेरी ज़िन्दगी के बदलाव का सबसे शानदार तथा दुःखद पलों का मेला था।
      
          एकदम ग़ज़ब का मेला था शुरुआत में सारी दुकानें एकदम बेहतरीन लगीं, फिर चलते चलते एक साथी कहीं खो गया अब मुझे पूरे मेले को पार करना होगा और फिर मेले के दूसरे छोर पर हम दोनों मिलेंगें जहाँ पर मिलने का वादा किया गया है। मुझे यक़ीन हैं कि आप मेरे काम की बहुत सारी चीज़ें सँजोये होगे उस पार। लेकिन तब तक मैं पूरे मेले में आपके क़िस्से सुनाता रहूँगा🙏
  
          स्वर्गीय श्री भारत भूषण पन्त जी का जन्मदिन यानी मेरी शाइरी के लिए भी एक अहम दिन, वैसे आपने मुझे शाइरी तो नहीं सिखाई लेकिन जो तजुर्बा दिया है मुहब्बत दिया है और जाने का ग़म दिया है न वो मेरी शाइरी की जान है। वो दर्द, मुहब्बत और तन्हाई को महसूस करने का रंग ही मेरी शाइरी को वजूद देता है। आपको पढ़ने के बाद दुनिया को देखने का नज़रिया बदल जाता है......एक अलग ही बात है आप में।
वैसे तो आप ग़ालिब के दीवाने थे, उन्हीं की ज़मीन पर बहुत ग़ज़लें कही है आपने लेकिन मैं आपके ग़ैरमौजूदगी में भी कहता हूँ कि मेरे ख़ातिर आप 'ग़ालिब से पहले हो'। मैंने बहुत ज़ियादः तो नहीं पढ़ा है लोगों को लेकिन जितना भी पढ़ा है कोई भी आप जितना महसूस नही हुआ है।

        आपने मुझे धीरेन्द्र सिंह 'फ़ैयाज़' जैसे बड़े शायर को भाई के रूप में भेंट किया। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पूछने पर आपने कहा कि मेरा बच्चा है, बड़ा प्यारा बच्चा है, शाइरी सीख रहा है...एक दिन नाम करेगा...अच्छा लिखता है अभी भी। अब क्या ही कहूँ दादा कि आपने क्या क्या नही दिया क्या क्या दे दिया...बहुत कुछ है।

       मैं विस्मृता लेकर आ रहा हूँ जल्द ही और उस दिन जो आपके सामने कहा था वो ही मेरा मक़सद रहेगा, आप वहाँ जन्नत से देखिएगा कि आपका बच्चा इस देश भर में कैसे नाम रौशन करता है🙏

सब कहते हैं तू वापिस आ जा घर अपने,
कब आये हैं राह-ए-जन्नत जाने वाले....

दादा आपको जन्मदिन की दिल से मुबारकबाद, आप शाइरी में ज़िन्दा हो बस ये ही आपके इस दुनिया में होने का निशाँ है।
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  अश्विनी यादव​​