"___खुद को सेवक और चौकीदारी कहने वाले एक कद्दावर नेता और उसके लगभग अंधे हो चुके समर्थकों को समर्पित ये पंक्तियाँ___,,
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जनता भूखी थकी हुई और चहुं ओर हाहाकार है,
पगले भक्त चिल्ला रहे है की बागों में बहार है,
उन्हें जान के लाले पड गये जो हमारे जिम्मेदार है,
देश का मुंह बंद करो कह रहा फट्टू चौकीदार है,
सलीमा देखाई में नोट चले पर खा नही सकते है,
वो लाइन में खाए धक्के जो आ जा नही सकते है,
बुढ़िया रोये अपाहिज रोये भारत देश परेशान हुआ,
आधी रात मे तेरे नाटक से जन मानस हैरान हुआ,
ये जान लो जिस कारण से तुम्हे सरताज बनाया था,
कैसे उनको गर्त में फेंक तुम्हें सत्ताधीश बनाया था,
पर क्या कहें की तुमने उनको काफ़ी पीछे छोड़ दिया,
तानाशाही और घुमाई कर हम से नाता तोड़ दिया,
रोटी छीना, थाली छीना, मुँह में नोटिस ठूस दिया,
चादर छीन लिया हमसे बदले में ठिठुरती पूस दिया,
सुन ओ सनकी राजा अधिकारों का हनन किया तुमने,
आपातकाल स्थिति पैदा कर हमे शर्मसार किया तुमने,
तुमको लाया भूल हुई तुम गला दबाने पे तुल गये हो,
तुम मदमस्त हाथी से सत्ता नशे में सब भूल गये हो,
है कसम इस बार तुम्हें जनता औकात दिखा देगी,
जैसे तुमको बिठाया था वैसे ही तुमको गिरा देगी,
नोट बंदी सही किया पर तरीका जनहित में न था,
तुम्हें गरीबी समझ होगी सोच लेना उचित न था,
साहब तुमने तो कुर्सी को अमीरों की रखैल बना डाली,
हम जनता खुद का ध्यान रखे जेटली जी ने कह डाली,
अब बताओ तुम रोज गरीबी-किसानी पेले रहते हो,
जहाँ देखो तुम भारत निर्माण की डींगे रेले रहते हो,
जितना तुमने प्रचारों पर खर्च कराया कामों का,
इतने के न काम हुए है लुटाया जितने दामों का,
अब तो वक्त निकल चुका कुर्सी छोड़ने की बारी है,
जन मानस बेहाल हुआ सबक सिखाने की तैयारी है,
जनता भूखी थकी हुई और चहुं ओर हाहाकार है,
पगले भक्त चिल्ला रहे है की बागों में बहार है,
___आज दुर्दशा सिर्फ नासमझी के कारण हुई, क्युकी उन्हें तो अमीरों के बीच में रहने की आदत है..तब गरीबों की बातें तो पन्नों में लिखी हुई आती है फिर मंच से आप चित्रित कर देते हो सब.....अब भला करे भगवान हमारा____
"पंक्तियाँ :- अश्विनी यादव"
हमें प्रयास करते रहना चाहिए ज्ञान और प्रेम बाँटने का, जिससे एक सभ्य समाज का निर्माण किया जा सके।
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सोमवार, 28 नवंबर 2016
आप तो उनसे भी आगे हो
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