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गुरुवार, 15 सितंबर 2016

याद करोगे जब हमें

करोगे याद जब हमको न आंसू रोक पाओगे,
मेरी बातों में खोने से न खुद को रोक पाओगे,
बड़ी तालीम ली होगी जमाने को सिखाने के लिए,
जमाना सवाल करेगा न किसी को टोक पाओगे,,,
कभी बिस्तर पे सिमटोगे कभी झरोखे पे आओगे,
कभी ख्वाबो में डूब के भूलकर मुझे बुलाओगे,
इक़ मेरी चाहत में कितनो को लिखना सिखाया,
तुमसे मोहब्बत न सम्हली अब नजर कैसे मिलाओगे,,,,
वो घरौंदे, वो पत्थर हमारे नाम के जब दिखाई देंगे,
दिल बोझिल हो जायेगा मेरे बोल सुनाई देंगें,
हम घुट घुट कर मर रहें कतरों में बिखर जायेंगें,
तुम ही जानो हाल तुम्हारा की कैसे जी पाओगे,
करोगे याद जब हमको न आंसू रोक पाओगे,......
     ―अश्विनी यादव

मंगलवार, 13 सितंबर 2016

तुम होती तो ऐसा होता

बडा गुमनाम हो गया हूँ बिछड़ कर तुमसे,
हर सुबह का मंजर क्या कहूँ कैसा होता,
शाम सुहानी हो जाती तेरा साथ पाकर के,
तुम होती तो ऐसा होता क्या कहूँ कैसा होता,//

ठंडी आने वाली होती जब जब भी,
तुम्हारे हाथ में ऊन का गोला होता,
हम चाय की चुस्की लेते पास बैठ के,
बगल में गर्म अलाव का शोला होता,
हम टहलते कोहरे में बातें करते करते,
हर लम्हा क्या कहूँ की कैसा होता,
सर्दियाँ इंतजार करवाती हमसे,
तुम होती तो ऐसा होता-वैसा होता,//

गर्मी के दिनों हम छत पर होते,
मै चाँद निहारता तो तुम्हे तराशता,
हाथ-हाथ ले और तुम्हारी बातों में,
मै खोता जाता और तुमको पाता,
भरी दोपहरी में तुम लस्सी बनाती,
तरबूज काटते क्या सोचूं कैसा होता,
धूप में छाँव चहूँ ओर हरियाली होती,
तुम होती तो ऐसा होता-वैसा होता,//

बारिशों में तुम्हारे हाथ के पकौड़े,
तीखी चटनी और करारी काफ़ी होती,
उस रिमझिम में भीगते खेल खेल में,
जरा मै सम्हलता तुम बहकती होती,
न जाने कब में दोनों को सर्दी होती,
काढ़ा बनाते क्या जानू कि कैसा होता,
बड़ी तसल्ली से रूह तक भिगो देता,
तुम होती तो ऐसा होता-वैसा होता,//

पतझड़ में बिखरी पत्तियाँ तुम्हारा,
इंतजार करती कुछ बेकरार होती,
पैरों से लिपटने आस-पास उड़ने को,
शाखों से भी वो तकरार कर लेती,
बागों का सरीखा मौसम ऐसा होता,
तुम होती तो ऐसा होता-वैसा होता,//

         ― अश्विनी यादव