कुल पेज दृश्य

सोमवार, 28 मार्च 2016

किसान मर गया

बड़ी चहल-पहल मची है । नेता जी शोक सभा में जा रहे है । उन्हें किस किस बात पे क्या क्या बोलना है, पहले किससे मिलना है। वहाँ का लोकल नेता कौन है पता लगाया जा रहा है।
-----वही दूसरी ओर एक घर में चारपाई पे एक जर्जर हुई शरीर। अगल बगल कई बिलखते चेहरे। जिसमे एक लगभग पागल सी दिखने वाली औरत.....और तीन बच्चे। जिनकी हालत कुपोषण के साये में जीवंत है।
बाजार में, सदन में, मन्दिर के ट्रस्ट की आफ़िस, नमाज के बाद मस्जिद के बगल में, नुक्कड़ पे  बार बार लगातार एक चर्चा बड़ी गर्म चल रही है,,,"फिर एक किसान मर गया"....
'किसान मर गया'
-------------------
चर्चाएँ चल रही चहुँओर
कि एक किसान मर गया,
संवेदना लेकर हर नेता
उसके घर पे है गया,
बात सदन में उठ रही
मौत क्यूँ हुई उसकी,
सत्ता कह रही कल की
ठंड से मर गया,
विरोधी पुरज़ोर कह रहे
वो कर्ज में डूबा था,
फसले हो गयी बर्बाद
वो डरके मर गया,
पर राहत देने को
कोई आगे नही आया,
मुआवज़े का ऐलान हुआ
पर मजाक बनकर रह गया,
अपने दो वक्त की रोटी को
जो सैकडों पेट भरता था,
वो जमीर का अमीरजादा
बेनाम किसान मर गया,
पर एक बात सच्ची सी
छोटी सी बच्ची बोली,
बाबू कई दिन से भूखे थे
उन्होंने खा ली जहर गोली,
कुछ ठेकेदार मजहब के
पूछ रहे है सबसे,
जरा पता करो जल्दी
हिंदू था कि मुसलमान मर गया,
ये दास्तान सुन करके
मेरा इन्सान मर गया,
बाँट लो दरख्तों को
तख्तों को ओ जल्लादों,
तेरा खुदा मर गया
और मेरा राम मर गया..
हलचल है शहर में की
फिर से एक किसान मर गया...
――
कुछ बेहूदे अभी तक कुतर्क कर रहे है आपस में ..
'यार उसके पत्नी का अफेयर था शायद,,, नही बे उसकी कही और सेटिंग थी उसी के चक्कर में,  अरे पीने के चक्कर में लड़ाई की होगी और फिर सुसाइड कर लिया होगा...
--©®---कवि/लेखक― अश्विनी यादव

कोई टिप्पणी नहीं: