कुल पेज दृश्य

शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

नज़्म - “ तुम अछूत हो ,,

तुम नीच जाति के हो
तुम्हें पता तो होगा ही
क्या काम है तुम्हारा
क्या नाम है तुम्हारा
क्यों ग़ैर जाति के लोग
महज़ गाली समझते हैं

तुम्हारे हिस्से है गाली
तुम्हारी क़िस्मत है ठोकर
महज़ तुम्हारे छूने से
ये मन्दिर ये किताबें
ये कुएं, तालाब सब
यहाँ तलक कि मिट्टी भी
हो जाती है अछूत
तुम समझते क्यों नहीं
तुम अछूत हो, अछूत!

तुम्हें खेत जोतने है
घरों की नींव खोदनी है
नाले साफ करने हैं
सीवरों में उतरना है
यही सब करते हुए पागल
तुम्हें इक रोज़ मरना है
न ईश्वर तुम्हारा है
न ये लोग तुम्हारे हैं

ग़र तुम्हें अपना समझते तो
तुमसे प्यार भी करते
तुम्हारा मान भी रखते
अरे पगलों ज़रा जागो
झूठी नींदों को तोड़ो
अपने चारों तरफ़ देखो
इक इंसान बनने को
तुम कितने तंज़ सहते हो

घोड़ियाँ छीनी जाती हैं
मूँछे कटवाई जाती हैं
बेटियाँ नोंची जाती हैं
बोटियाँ फेंकी जाती हैं
करोगे क्या भला तुम भी
ये आदत हो चुकी अपनी
उन महलों की फ़सीलों पर
माथा टेकने से ग़र
तुम्हें फुर्सत मिले तो फिर
ज़रा सोचो इन सब के सबब
क्यों हड्डियाँ तोड़ी जाती हैं
क्यों तुम्हारी जानें जाती है

  
   ~ अश्विनी यादव



कोई टिप्पणी नहीं: