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मंगलवार, 31 मार्च 2020

ग़ज़ल

वो मंजिल दूर लगती जा रही है,
भले गाड़ी ये चलती जा रही है,

हँसा हूँ जोर से लज़्ज़त-ए-ग़म पर,
मिरी उम्मीद बढ़ती जा रही है,

किसी की भूख बढ़ती देखकर ही,
हमारी आँख मुँदती जा रही है,

मिरे आगे ये दुनिया रो रही है,
मिरी भी उम्र घटती जा रही है।

अभी तक मौत से झगड़ा रहा है,
वही महबूब बनती जा रही है ।

जहाँ सारा यहीं श्मशान होगा,
ये जो तलवार खिंचती जा रही है।

कि खाली हाथ से मैं क्या करूँगा,
ये ही मुझको खटकती जा रही है,

सभी त्यौहार अब मातम लगेंगें,
नई दीवार बनती जा रही है,

कहो तो क़ब्र मेरी खोद आएँ,
मिरी भी नब्ज़ रुकती जा रही है.....
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   अश्विनी यादव