कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 5 मार्च 2019

नज़्म ( ज़िन्दा नज़र आओ )

यही वो वक्त है
ज़िन्दा होने का एहसास करो
अगर हाथ है तो
उठाने का प्रयत्न करो
कलम में स्याही नही
बारूद भरो
बेशक तुम्हारा ख़ून बहेगा
लेकिन नस्लें महफूज़ रहेंगीं..…

अगर पाँव है तो
दौड़कर आगे बढ़ो
ज़ुल्म के मुँह तमाचा जड़ने
जो कर सकते हो
करने की कोशिश करो
नही तो किसी रोज़
औरों की तरह
वो तुम्हें भी खा जाएगा
फिर तुम्हारी कायरता
नई नस्ल में भी उतर जाएगी....

ये भूख तुम्हारी है
ये मिट्टी भी तुम्हारी है
छिली हुई पीठ, घिठ्ठे वाले हाथ
सब कुछ तुम्हारा है
ये तय है कि ऐसे ही
मरना है तुम्हें
तो क्यूँ न लड़कर मरा जाए
बचेंगें तो भी हम ही
नही तो हमारे अपने बचेंगें.....