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रविवार, 17 जून 2018

Happy Father's Day

  
       कई रंग अपनी आंखों में पिरोना और फिर उसे पूरा न कर पाना.....लेकिन अपने दूसरे जनम में उसे साकार करने की पूरी कोशिश करना, यहीं जो पहला जन्म है वो पुत्र के रूप में है और दूसरा जनम ख़ुद का पिता बनने के बाद अपने बच्चों की जिंदगी में अपने अधूरे सपनों को साकार होते हुए देखना ही पिता का जीवन है।

           आज मैं चाचा हूँ, यानी कि एक बच्चे के पिता का भाई हूँ, और वो बच्चा जो कि मेरी भतीजी भूमि है.....   मेरे पैरों के, सर के बाल नोंच लेती है, कंधे पर दाँत चुभा देती है, चेहरे पर तो उसके नाखूनों के इतने दस्खत हैं की गिनती नहीं.......फिर भी मुझे कोई शिकायत नही है। मैं उसे कभी कभार डांटता भी हूँ लेकिन उसकी मुस्कान के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता हूँ.........ये एक चाचा की जिंदगी है तो,
    ख़ुदा जाने या एक पिता जाने की एक पिता की जिंदगी कैसी होती है।
               मैंने देखा है अपने पिता जी को की अपनी कई इच्छाओं की बलि चढ़ा कर हमारे चेहरे पर ख़ुशी की कोशिश करते हैं। हम फिर भी शिक़ायत रखते हैं।

   चलो छोड़ो बस इतना जानो की हम एक किताब हैं, और हम पर जो ज़िल्द चढ़ी है वो बड़े भैया हैं, और जिस बस्ते में हम रखे हुए एकदम सुरक्षित है न वो पिता जी हैं,,,,,,बस यहीं हम है ये हमारे पिता जी है।

     पहले तो पैदा हुए बेटे की जिंदगी बंधी हुई बाप के हाथों, फिर बाप बन गए तो बच्चों के जिंदगी में अपनी जिंदगी, और जब दादा बन गए तो बचपन की जिंदगी जो आज़ाद भी है और आश्रित भी।
    लेकिन एक जीवन तभी मुक़म्मल होता है जब हम परिवार में हो,चाचा,पति,पापा,बाबा,...... बनते हैं।
  
         "मेरे लिए जिंदगी बस इतनी सी है,,

           ― अश्विनी यादव

#HappyFather'sDay

बुधवार, 13 जून 2018

जो तुम लौट आते


हमारे दरमियान यह जो ख़ामोशी है. यही मुहब्बत है. तुम दुनिया में मसरूफ़, मैं दुनिया में मसरूफ़ जब कि हम दोनों ही के पास वैसा कोई काम नहीं है कि हम एक दूसरे में मसरूफ़ न हो सकें. इसके पीछे जो वज्ह है, वो मुहब्बत है.
लौटना इतना मुश्किल नहीं है, कभी होता ही नहीं.
तुम्हें लौट आना चाहिए !

मरज़ ये वो था कि जिस में तो जान जाती है
मैं मर भी जाता जो वो वक़्त पर नहीं आता
ﻣﺮﺽ ﯾﮧ ﻭﮦ ﺗﮭﺎ ﮐﮧ ﺟﺲ ﻣﯿﮟ ﺗﻮ ﺟﺎﻥ ﺟﺎﺗﯽ ﮨﮯ
ﻣﯿﮟ ﻣﺮ ﺑﮭﯽ ﺟﺎﺗﺎ ﺟﻮ ﻭﮦ ﻭﻗﺖ ﭘﺮ ﻧﮩﯽ ﺁﺗﺎ
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फ़ैयाज़ ﻓﯿﺎﺽ

सोमवार, 4 जून 2018

नज़्म ( हम बैठे है )

रेलगाड़ी के गुजरने से
वो पुल थरथराने लगा
जिसके नीचे 'हम' बैठे हैं,

गंगा का पानी भी न
अठखेलियां करने लगा
इसके बगल 'हम' बैठें हैं,

उसकी उंगलियां बेझिझक
मेंरी उँगलियों से लिपटी हैं
इतने पास 'हम' बैठें हैं,

रेत से हो पानी चूमता हुआ
झोंका हवा का झूमने लगा
ऐसे होश खोकर 'हम' बैठें हैं,

उसका सर मेरे कांधे पे
पूरा का पूरा टिकने लगा
रुकती सांस लिए 'हम' बैठें हैं,

अभी रंगीनियों में डूबे थे
याद आया समाज हमको
जिससे छुप के यहां 'हम' बैठें हैं,

जाने कैसी जाति की लाज की
ये बेंडियां बनाई गई हैं
जिनसे डरकर आज 'हम' बैठें हैं,

वो जिसके साथ जीना मरना है
उसको चुन लेना भी गुनाह है
ऐसी इंसानियत लिये 'हम' बैठे हैं,

खाप का है फैसला मार देंगें
हमारी भी ज़िद है जी लेंगें
ये एहसास में डूबे 'हम' बैठे हैं,

एक दफा जी करता है मर जाये
सदियों की बेड़ियों कैसे तोड़ेंगें
इश्क़-खौफ़ द्वंद में 'हम' बैठें है,