मेरी फ़िक्र करो, जिक्र करो मेरी,
बदहाल बचपन से सुबह करो मेरी,
मैं हूँ भारत का मजबूर भविष्य,
तकदीरों से ओझल दूर भविष्य,
क्या गरीबी में ही जीना मरना है,
क्या यूँ पशुवत विचरण करना है,
क्या यहाँ मेरा न कोई रखवाला है,
क्या देश मस्ज़िद और शिवाला है,
क्या जाति पात में भी पिसना होगा,
क्या धर्मी दंगों में घुट के रिसना होगा,
क्या यहीं जीना और मरना होता है,
क्या इस संत्रास पे दिल नही रोता है,
क्या मेरे स्वाभिमान का मोल नही,
क्या मानवता का यूँ कोई तोल नही,
बोलो भारत बोलो क्या यही भविष्य,
कूड़े कचरे के ढेरों में दबता भविष्य,
रहने दो न बोलो तुम नहीं कह पाओगे,
सच बोलने वाला कलेजा कहाँ लाओगे,
तुम लिप्त रहो भोग विलास में सने रहो,
कायर थे, कायर हो, कायर ही बने रहो,
यहां स्वार्थ के पूरण में ही कौमे जिन्दा है,
मुर्दों ने घरबार जलाया, मुर्दे ही शर्मिंदा है,
कवि हूँ बोल दिया तुम न हिम्मत करना,
गर करना इतना की आईना साफ रखना,
( कवि :- अश्विनी यादव )
हमें प्रयास करते रहना चाहिए ज्ञान और प्रेम बाँटने का, जिससे एक सभ्य समाज का निर्माण किया जा सके।
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सोमवार, 30 जनवरी 2017
मैं कौन हूँ
शुक्रवार, 20 जनवरी 2017
हाँ तुम स्त्री हो
माँ हो, बहन हो, बेटी हो,
परिवार खुद में समेटी हो,
कभी फूल सी कोमल हो,
कभी हीरे सी कठोर हो,
रात सी शीतल दिन सोनल हो,
समाज संघर्ष की भोर हो,
आस्था की ज्योति नारी हो तुम,
हम एक रूप में उद्धारी हो तुम,
हो विश्वास की कल्पवृक्ष,
प्रेम न्याय की मूर्ति हो,
हो दर्पण सी एक चच्क्षु,
मनुष्य श्रृंखला की पूर्ति हो,
हाँ तुम लड़की हो औरत हो,
पत्नी हो हाँ तुम स्त्री हो,
तुम गर्व करो अभिमान करो,
अपने नारीत्व का सम्मान करो,
(कवि―अश्विनी यादव)
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