कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 26 जुलाई 2016

तुम बिन

मारो कोई बिष बाण प्रिये,
अब ले लो मेरे प्राण प्रिये,
तुम नही रही मेरी बनके,
कुसुमालय हुए कृपाण प्रिये,
की अब ले लो मेरे प्राण प्रिये।।

सुमरुं प्रेम नित नये गीत से,
दरश जो पाऊँ अपने मीत के,
बलिहारी करूं ज्यों रसिक बना,
कनक हुआ इस इश्क रीति से ।।

    © अश्विनी यादव

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

मतलब के पुजारी


चलो इस बार फिर से कोई मुद्दा ही छेड़ते है,
खाली थे बैठे कब से कुछ जहर ही बोलते है,
खुश है मेरी ये गलियाँ सूनी नही पड़ी है,
दो-चार घर पे छिप के पत्थर ही फेंकते है,
चलो इस बार फिर....
नुक्कड़ वाले मियाँ जी बड़े मौज गा रहे है,
दो वक्त वाली रोटी कैसे वो खा रहे है,
इस कदर के मौसम में मेरी आन न पड़ी है,
सो लेके हम दिया फिर लूकी लगा रहे है,
चलो इस बार फिर......
वो अपने मकसद खातिर जय राम बोलते है,
खुदा नाम पे तमाशे को इश्लाम बोलते है,
कुछ तेरी कौम वाले कुछ मेरे धर्म वाले,
मतलबपरस्ती में अब इन्सान तौलते है..,
चलो इस बार फिर से....
न खुदा जानते है न राम से मिले है,
ये कुर्सी और शोहरत इस काम से मिले है,
शहर के लोगो को गर सच कभी बताता,
ये राज कैसे करते जो आराम से मिले है,,

  सर्वाधिकार सुरक्षित ―अश्विनी यादव

बुधवार, 13 जुलाई 2016

इन्सान जिन्दा है

"सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा बहुत बार सुना हमने..लेकिन घाटी में ही इंसानियत के , देश के , मजहब के दो रंगो में देखा हमने...
कुछ पंक्तियाँ...
--------------------------------
लाख सूर्य अस्त हो जाये तो
हम चिराग जलाते रहेंगे,
अपने घर के दरवाजे पे
हिदुस्तानी लिखवाते रहेंगे,
सीख दी औलादो को यही
पत्थर, हांथो में उठाना नही,
केसर की क्यारी है हमारी
इस पर सवाल उठाना नही,
क्या मियां क्या हिन्दू भाई
सौहार्द बनाये रखना तुम,
सेना सलामी तिरंगा कहानी
लाल न कभी बिसरना तुम,
हिन्दू, हिंदी, हिन्द धरा की
माने-अलख जलाना तुम,
कभी दहशतगर्दी में पड़कर
'आतंकी' न बन जाना तुम,
हम सभी है वतन के सिपाही
सरहदे धूमिल होने न देंगे,
बुरहान, अफजल भले थे हमारे
अब कोई जाकिर होने न देंगें....!

          ©  अश्विनी यादव