बारिश की बौछार
आ रही थी चूल्हे तक
रोटी पकी नहीं थी कि
चूल्हा बुझ गया
लेकिन घर के लोगों ने
और बारिश की चाह रखी,
भीगते -ठिठुरते लोग
अपने आप से ज़ियादह
थे अपनी माटी को सोच रहे..
सोच रहे थे
ये कपड़े तो
कल ही सूख जाएँगें
ये रोटी कल भी बन जाएगी
लेकिन,
ग़र बारिश रुकी
तो फसल नहीं
जो फ़सल नहीं
तो नस्ल नहीं..
– अश्विनी यादव