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शनिवार, 11 जुलाई 2020

ग़ज़ल ( इलाहाबाद )

रिश्ता इलाहाबाद है वादा इलाहाबाद
दिल का सुकूँ है बन चुका पूरा इलाहाबाद।

हर वक़्त का अच्छा भला सिक्का इलाहाबाद
इस वक़्त हमको है मिला शाना इलाहाबाद।

ग़मगीन होते ही मेरे छपटा लिया है यार
यूँ चाहता है मुझको ये मेरा इलाहाबाद।

इक मुख़्तसर सी याद या दिल में दबाए प्यार
हर एक शय में है मेरे ज़िन्दा इलाहाबाद।

हैं इल्म इसके पास इतना सब्त-ए-शहकार
पहली नज़र में शह्र था भाया इलाहाबाद।

जब भी कभी आँखें खुली देरी लिए अल-सुब्ह
इस बात से ही हो गया गुस्सा इलाहाबाद।

इक चाय का कुल्हड़ ज़रा सी हो जलेबी साथ
इक है इसी आदत का अब हिस्सा इलाहाबाद।

दिन भर लिखा दिन भर पढ़ा करता रहा है शाम
फिर रात में भी जागता रहता इलाहाबाद।

ये दिल कहाँ टूटा करे किससे ज़िग़र की बात
हाँ - हाँ वहीं  तो है जहाँ हारा इलाहाबाद।

लो आज मेरे पास है हासिल सभी की रात
बस इक उसी की याद में तन्हा इलाहाबाद।

इक मैं इलाहाबाद हूँ इक तुम इलाहाबाद
फिर भी अधूरा रह गया क़िस्सा इलाहाबाद।

इक फ़िक्र हमने देख ली लेकर हसीं सौग़ात,
आमद हमारी जीत का लाया इलाहाबाद।

कुछ दौर अपने ख़ुद छिपाया कुछ छिपाये दौर,
इक जज़्बनामा लिख रहा तन्हा इलाहाबाद।
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   अश्विनी यादव