#बिटिया #समाज #सरकार और #हम
मैं अश्विनी, हमारे भारत की बुनियादी ढांचे को दर्शाने की कोशिश कर रहा हूँ....
........आइये रूबरू होते है भारत देश से जो कि पुरूष प्रधान देश है जहां #यत्र_नारयेस्तु_पूज्यन्ते_रमन्ते_तत्र_देवता की गाथा गायी जाती है लेकिन हकीकत में हर वक्त महिलाओं को कुचला ही जाता है। क्यूंकि ये पुरूष खुद के अस्तित्व पर विश्वास नही कर पा रहा है सदियों से।
अब बात करते है महिला उत्पत्ति की........
सबसे पहले तो कोई नही चाहता कि उसके घर बेटी जन्मे इसके लिए वो टोटके से लेकर डॉक्टर तक के दरवाजे पर दस्तक देते है, इसके बाद जाँच पड़ताल करवाने के बाद यदि 'बेटी' की संभावना रहती है तो उसे गिराने के लिए हर सम्भव प्रयास किया जाता है फिर भी किसी कारणवश यदि कोई बात नहीं बन पाती है तो पैदा होने के बाद उसे कूड़ेदान, गटर, नाली, कीचड़, तालाब, झाड़ियों, खेतों, में फेंक देते है........ अगले सुबह कुछ कुत्तों द्वारा वो नन्ही जीव चीथी जाती हुई लाश के रूप में आधी अधूरी मिलती है।
फिर भी इन सबसे गर किसी तरह से बच गयी तो घर मे एक ग्रहण की तरह सबके निगाहों में चढ़ी हुई पाली जाती है, गिरते सम्हलते थोड़ा बहुत पढ़ने को जाती हैं यदि भाग्य ठीक रहा तो, कुछ दिन बाद वो भी बंद। इसके बावजूद किसी रिश्तेदार, पड़ोसी आदि से बलात्कृत होने से बच गयी तो जरा सा बड़ी होने पर दबंगो द्वारा खेतों में घसीट ली जाई जाती है, मनचलों द्वारा छेड़ी जाती है गर विरोध करती है तो मार दी जाती हैं, हाथ पैर काट डाला जाता है, तेजाब से नहला दिया जाता है,........ इतने के बाद भी बच गयी अगर तो कम उम्र में शादी कर दी जाती है, वहां ससुराल में पे जाने के लिए उसे पैसो से तोला जाता है... कई बार दहेज प्रथा को जीवंत रखने के लिए आग के हवाले करने में भी सास, ससुर और पति कोई कोताही नहीं बरतते है।
मान लो ये सब से निकल गयी वो तो जिंदगी भर जूती बनकर जीने को ही अपनी किस्मत समझकर वो मजबूर रहती है।
.......इस संसार मे न जाने क्यों पौरुष का प्रमाण देने के लिए महिला को पताडित करके ही दर्शाया जाता रहा है। आवेश में आकर पुरूष मारेगा, बलत्कृत करेगा, कभी अकेले कभी सामूहिक और इतने जुल्म होने के बाद वो महिला या बिटिया ही अपवित्र हो जाती है जबकि उसके साथ ये घिनौनी हरकत करने वाले लोग पाक साफ बने समाजिक प्रतिष्ठा के अधिकारी होते हुए जिंदगी को जीते है।
.....इन सभी ग्रन्थों से लेकर हर जगह पर नारी को संसार सृजन कर्ता कहा गया है लेकिन हकीकत में पैदा होने के पहले से आखिरी सांस तक मतलब हर वक्त
वो डरी, सहमी, कुचली, अपमानित की हुई मिलती है। यदि यही पुरुषत्व के पौरुष की निशानी है तो मैं अश्विनी, थूकता हूँ इस दोगले समाज पर।
हमें प्रयास करते रहना चाहिए ज्ञान और प्रेम बाँटने का, जिससे एक सभ्य समाज का निर्माण किया जा सके।
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 23 अगस्त 2017
बिटिया
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें