साहब ने सारी तैयारी कर रक्खी,
हर इक घर पर पहरेदारी कर रक्खी,
जो बोलेगा उसको पीटा जाएगा,
कोर्ट -कचहरी रोज़ घसीटा जाएगा,
पहले तुमको थाने में बुलवाएंगें,
फिर वर्दी से मनमर्ज़ी करवाएंगें,
लेकिन साहब तुमको इतना ध्यान रहे,
कर्म सभी का हासिल है ये ज्ञान रहे,
जैसे तुम यूँ सबको आज रुलाते हो,
तुम भी रोये थे क्यों भूले जाते हो,
हाँ मा'लूम हमें हैं तुम ही दाता हो,
जेल नहीं तो मौत के भाग्य विधाता हो,
ईश्वर जाने कब तक का ये खेला है,
जाने कैसे हम सब ने ये झेला है,
रोजी रोटी का उनका इक वादा था,
पर लगता है ये सब शोर सराबा था,
जंगल में हम रहते हैं ये बोले थे,
भाषण में वो अंगारे ही घोले थे,
जात बिरादर का डंका भी पीटे थे,
यूँ समझो बस ये सब कर ही जीते थे,
इक वादे पर सौ वादा कर ऐंठे थे,
हाथों का ये खेल समझ कर बैठे थे,
उस दिन तक तो पैरों में गिर जाते थे,
हरक़त ये चमचों से भी करवाते थे,
उस मालिक को जैसे ही सत्ता सौंपी,
मझधारे में हमने थी नौका सौंपी,
उस दिन से फिर रोज़ हमें दुत्कारा है,
अब आख़िर के हक़ में वोट हमारा है,
बढ़कर आगे आओ फिर टकराने को,
उस ज़ुल्मी के मुँह पर सच कह जाने को,
देखो कितनी आग रखे हो सीने में,
बाहर ला के शामिल कर लो जीने में,
वोट से पहले गुरूर-ए-हाकिम तोड़ो जी,
बिन तोड़े यूँ कॉलर तो मत छोड़ो जी,
~ अश्विनी यादव